दामिनी
दर्द है सिनेमें,
डॉक्टर्स दवा दे रहें है |
लोगोंका स्नेह है,
जो ईश्वर से दुवा मांग रहें है |
साँस टूट रहि है,
फिरभी जीना चाहती हूँ |
कुछ भी आशा नहीं है,
फिरभी आशा कर रहीं हूँ |
घुट-घुट के मर रहीं हूँ,
फिरभी जीना चाहती हूँ |
हे भगवान, यह कैसा संसार है,
यहाँ इन्सान के नामपर कुछ हैवान भी है |
यह कैसी सरकार है,
जो किसीकी नहीं सुनती है |
पर कई लोग है,
जो हमसे लगते है |
कई लोग है,
जो विश्वास मुझे दिलाते है |
जिना चाहती हूँ इसी आशासे,
के इंसाफ मिलेगा जरूर एक दिन |
इंसाफ की देवी है अंधी,
पर विश्वास उसपर करती हूँ |
लोगोने नाम दिया है मुझे दामिनी,
बुरायिके दमन के लिए जीना चाहती हूँ |
लोगोने नाम दिया है मुझे निर्भय,
निर्भय होकर जीना चाहती हूँ |
आज भारत में बलात्कार और बलात्कार जैसे लगातार होने वाले घिनौने कृत्य भारत की संस्कृति पर एक बहोत बड़ा कलंक है | कुछ नेता ऐसे घिनौने कृत्य को छोटा कृत्य बताकर ऐसे घिनौने कृत्य करने वालोंको प्रोत्साहित करते है | दामिनी यह घटना एक दर्दनाक और घिनौनी हरकत थी | कानून में बदलाहट करने के बाद भी भारत में इस तरह की घटनाये लगातार हो रही है | उपरोक्त कविता मैंने २८ दिसम्बर २०१२ को लिखी | बस उसके एक दिन बाद ही दामिनी ने दम तोड़ दिया और वह हमारे इस दुनिया से विदा हो गयी | यह कविता दामिनी के लिए मेरी एक भावपूर्ण श्रद्दांजलि |
#Damini battles for 12 days and succumbs. It is now the struggle of the people to get justice to #Nirbhay. RIP !! pic.twitter.com/dQZ53fkM
— Avadhoot Dandekar (@Webtwits) December 30, 2012
वाह...सुन्दर और सामयिक पोस्ट...
ReplyDeleteसमस्त ब्लॉगर मित्रों को हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं...
नयी पोस्ट@हिन्दी
और@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ