Sunday, August 3, 2014

दामिनी



दामिनी 

दर्द है सिनेमें, 
डॉक्टर्स दवा दे रहें है | 

लोगोंका स्नेह है, 
जो ईश्वर से दुवा मांग रहें है | 

साँस टूट रहि है, 
फिरभी जीना चाहती हूँ | 

कुछ भी आशा नहीं है, 
फिरभी आशा कर रहीं हूँ | 

घुट-घुट के मर रहीं हूँ, 
फिरभी जीना चाहती हूँ | 

हे भगवान, यह कैसा संसार है, 
यहाँ इन्सान के नामपर कुछ हैवान भी है |

यह कैसी सरकार है, 
जो किसीकी नहीं सुनती है | 

पर कई लोग है, 
जो हमसे लगते है | 

कई लोग है, 
जो विश्वास मुझे दिलाते है | 

जिना चाहती हूँ इसी आशासे, 
के इंसाफ मिलेगा जरूर एक दिन | 

इंसाफ की देवी है अंधी, 
पर विश्वास उसपर करती हूँ | 

लोगोने नाम दिया है मुझे दामिनी, 
बुरायिके दमन के लिए जीना चाहती हूँ | 

लोगोने नाम दिया है मुझे निर्भय, 
निर्भय होकर जीना चाहती हूँ | 

आज भारत में बलात्कार और बलात्कार जैसे लगातार होने वाले घिनौने कृत्य भारत की संस्कृति पर एक बहोत बड़ा कलंक है | कुछ नेता ऐसे घिनौने कृत्य को छोटा कृत्य बताकर ऐसे घिनौने कृत्य करने वालोंको प्रोत्साहित करते है | दामिनी यह घटना एक दर्दनाक और घिनौनी हरकत थी | कानून में बदलाहट करने के बाद भी भारत में इस तरह की घटनाये लगातार हो रही है | उपरोक्त कविता मैंने २८ दिसम्बर २०१२ को लिखी | बस उसके एक दिन बाद ही दामिनी ने दम तोड़ दिया और वह हमारे इस दुनिया से विदा हो गयी | यह कविता दामिनी के लिए मेरी एक भावपूर्ण श्रद्दांजलि |

1 comment:

  1. वाह...सुन्दर और सामयिक पोस्ट...
    समस्त ब्लॉगर मित्रों को हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं...
    नयी पोस्ट@हिन्दी
    और@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ

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