Monday, July 28, 2014

इन्लैतेंद लीडरशिप क्या है?

नेता पहले या निति पहले?
एक नए राजनीती और राजनीतिज्ञ का अवसर | 

राजा पहले या प्रजा? नेता पहले या निति? पैसा पहले या प्रभु? या पैसा ही प्रभु? क्या भारत के अभीभी कोई जलते प्रश्न है? क्या हम गर्व से कह सकते है, “मेरा भारत महान”!! क्या खोकले राजनीति का उत्तरदायी भारत? अंधश्रद्धा, कालाबाजारी, भाषा और धर्मं में फिरसे बटता भारत | आओ चले खोजे कुछ नए प्रश्नों के नए उत्तर | आओ चले खोजे क्या हमने पाया और क्या हमने खोया | आओ चले बनाये एक नया भारत | केवल हम सभी से ही होगा, सारे जहाँ से अच्छा ये हिन्दुस्ता हमारा | जय हो !!

भारत हमेशा से एक महान देश रहा है | प्राचीन काल में भी भारत की एक अपनी अनूठी भूमिका रही है | आज जब विश्व वैश्वीकरण की और बढ़ रहा है तब भी भारत विश्व में एक अपनी अनूठी भूमिका निभा रहा है | आज जब विश्व अपगमन (रिसेजन) से गुजर रहा है तब भी बाकि देशो के मुकाबले भारत का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा है | निश्चित ही इसका पूरा श्रय भारत के प्रधान मंत्री और उनके टीम को ही जाता है | लेकिन इसके बावजूत भी भारत की कुछ भीतरी समस्याए उसे भीतर से खोकला बना रही है | क्या है भारत की भीतरी समस्याए? पैसे की राजनीती, भ्रष्टाचार, कालाबाजारी, मिलावट, भाषा, ज्याति और धर्मं की राजनीति, प्रांतीय और केंद्रीय नोक झोक, ये है भारत की कुछ भीतरी समस्याए | जब तक इन समस्यओंका समाधान नहीं होगा भारत कभी भी एक सम्रध देश नहीं कहलायेगा |

पर यहाँ कभी कोई नेता और कोई पार्टी राम राज्य की जरूर कल्पना करती है | क्या यह कभी संभव होगा? कितनी खरी और कितनी खोटी पर मुझे भगवान राम के समय की एक अद्भुत घटना याद आती है | भगवान राम को चौदा साल का वनवास स्वीकारना पड़ा | इस दौरान राज्य का दायित्व उनके छोटे भाई भरत को जाना था | जनक एक दुसरे ही देश के एक राजा थे और उन्होंने अपनी पुत्री सीता को राम की धर्मपत्नी के रूप में दिया था | भरत राम के एक अनूठे भाई थे | वनवास के पुरे वर्षो से लेकर राम के आयोद्ध्या लौटने तक भरत ने राज्य को राम के पादुकओंको पूजते हुए किया | यह जानने के लिए की राज्य कैसे चल रहा है, जनक ने अपने कुछ गुप्तचर आयोद्ध्या भेजे | इस दौरान उन्हें एक अद्भुत घटना का पता लगा की भरत अभी भी अपने भाई राम के पादुकओंको पूजते हुए राज्य कर रहे है | इस बात को जानकर राजा जनक बड़े प्रसन्न हुए | जब जनक राम को मिले तब भी उन्होंने इस बात का जिक्र रामसे नहीं किया | क्या था हमारा अतीत, और क्या है हमारा वर्त्तमान, और क्या होगा हमारा भविष्य? यह चिंता हर भारतीय को आज जरूर सताती होगी | इस तरह के रामराज्य की पुनर्स्थापना करनेकी बाते हमारे कुछ राजनेता अभीभी करते रहते है | क्या यह संभव हो पायेगा? राम जाने |

आज भारत को आजाद हुए ६० से भी ज्यादा वर्ष हो गए है | पर हमारा देश अभी भी विकासशील देशो की श्रेणी में ही गिना जाता है | गरीबी रेखा से गरीब ऊपर नहीं उठ पाता है | घूसखोरी कभी बंद नहीं होती | अमिर और गरीब का अंतर बढ़ता ही चला जाता है | किसान आत्महत्या कर रहे है | विद्द्यार्थी आत्महत्या कर रहे है | अनाज के दाम कभी नहीं कम होते | सब्जी महंगी ही होती चली जाती है | थोक बिक्री मूल्य सूचकांक (होल सेल प्राईस इंडेक्स) में लायी गयी कमी, उपभोक्ता बिक्री मूल्य सूचकांक (कनसुमर सेल प्राईस इंडेक्स) में तब्दील होते होते और उपभोक्ता को उसका लाभ होते होते मूल्य फिर बढ़ ज्याते है | आज सामान्य खाने के चिजोंके दामो में भारी मात्रा की बढोती होकर वे आसमान छु रहे है | रोटी, कपडा और मकान एक कल्पना ही मात्र रह गई है |

धर्म यदि सत्य है, तो अनेक धर्मं कैसे हो सकते है? क्या कंही अनेक सत्य होते है? क्या सत्य प्लूरल है, या हो सकता है? हम भले ही अलग अलग जाती पाति के लोग हो, हमारा धर्म केवल एक ही हो सकता है | जबकि हमारी जाती भी केवल एक ही होनी चाहिए, केवल मनुष्यता ही हमारी एक जाती हो सकती है | और हम सभी का केवल एक ही धर्म होगा | प्रेम ही हम सभी का एक धर्म हो सकता है |

मुझे एक ऐतिहासिक और बहोती पराक्रमी राजा की एक घटना याद आती है | इस राजा का नाम था राजा छत्रपति शिवाजी | इस राजा के एक धर्म गुरु थे जिनका नाम था समर्थ स्वामी रामदास | एक दिन हुआ ऐसे की स्वामी रामदास बिना राजा शिवाजी को बताये उनके राज्य में पहुंचे | कुछ समय बाद ये खबर राजा तक पहोंच गयी | राजा शिवाजी तुरंत बिना कोई समय नष्ट किये स्वामी रामदास के पास पहुंचे | राजा ने स्वामी रामदास को महल में आने और रहने का आमंत्रण दिया लेकिन स्वामी रामदास नहीं राजी हुए | नाराज होकर राजा शिवाजी राज्य छोड़कर सन्यास लेने की बात कही | राजा छत्रपति शिवाजी बोले, “स्वामी, यह पूरा राज्य केवल आपका ही है | मै तो केवल आपका शिष्य हूँ और मेरी प्रजा का सेवक” | इस बात को सुनकर स्वामी रामदास को बड़ा आनंद हुआ और उन्होंने कहा, “शिवबा, यदि यह पूरा राज्य मेरा है तो तुम मुझे इसे अभी मेरे नाम कर दो” | राजा शिवाजी बिना कुछ सोचे पूरा राज्य अपने धर्म गुरु के नाम कर दिया | तब स्वामी रामदास ने एक नया चमत्कार किया | फिर उन्होंने पूरा राज्य वापिस राजा शिवाजी को देते हुए कहा, “शिवबा, अब यह सारा राज्य मेरा हुआ और तुम्हारा नहीं | अब इसे मै तुम्हे वापस सोम्प्ता हूँ | अब इस पर तुम राज्य करो इसे मेरी भेंट समझकर और तुम्हारा अपना राज्य समझ कर नहीं” | और इस तरह स्वामी रामदास राजा से विदा ले ली | वे कई वर्षो तक राजा छत्रपति शिवाजी का मार्गदर्शन करते रहे | इस तरह राजा छत्रपति ने अपने राज्य को पुरे कर्तव्य से सम्भाला और अपने प्रजा की खूब सेवा की |

ये थे हमारे अतीक के कुछ अच्छे पन्ने | क्या इस तरह का कोई द्रश्य हमें हमारे आधुनिक युग में या भविष्य में देखने को मिलेगा | ऐसा कभी होते मुझे दिखाई नहीं पड़ता | यह कुछ असंभव सा ही लगता है | हमें हमारे देश को चलाने के लिए कुछ अच्छे नेता और नीतियों की सख्त जरुरत है | इसी को ही मै “अभिग्न्यात नेतृत्व” (इन्लैतेंद लीडरशिप) कहता हु | इस तरह के नेतृत्व की भारत को अय्तादिक जरुरी है | इस को सफल और साकार बनाना हम सभी का ही कर्त्तव्य होगा और एक सपना भी |

मैंने सुना है अतीत में भगवान स्वयं हमारे साथ रहा करते थे | यह एक प्राचीन कथा है | एक दिन भगवान ने मनुष्य से कुछ पुछा और बदले में कुछ माँगा | भगवान ने मनुष्य से कहा, “मै तुम्हे सब कुछ देता हूँ | मैंने तुम्हे पंचभूत दिए है | पानी, जमीन, आग, हवा और आकाश | ये सभी चीजे मैंने तुम्हारे जीवन के लिए दिए है |लेकिन तुमने मुझे इसके बदले कुछ नहीं दिया | क्या तुम इसके बदले मुझे कुछ दे सकते हो?” | तब मनुष्य भगवान को कुछ देने के लिए तैयार हुआ | मनुष्य ने कहा की इस वर्ष की फसल का एक हिस्सा वह भगवान को देगा | और उसने भगवान को फसल का हिस्सा चुनने को कहा | जमीन के ऊपर का हिस्सा या जमीन के नीचे का हिस्सा | भगवान ने कहा जमीन के नीचे का हिस्सा | समय बिता और फसल का समय आगया |मनुष्य ने भगवान को अपना हिस्सा लेने को बुलाया | भगवान आये पर उनके हाथ फसल का कोई भी हिस्सा नहीं लगा, क्योंकि मनुष्य ने वह फसल बोई जो केवल जमीन के ऊपर ही आती हो. जैसे, फूल गोबी, पत्ता गोबी, ज्वारी, वगैरह | ऐसी फसल जो केवल जमीन के ऊपर ही आती हो | अब दुसरे वर्ष के फसल की बात हुई |इस बार भगवान जमीन के ऊपर के हिस्से को लेने की बात कही | मनुष्य ने कहा ठीक है | फिर पूरा वर्ष बीत गया और फसल लेने का फिर समय आगया | इस बार भी भगवान के हाथ कुछ नहीं लगा | क्योंकि इस बार मनुष्य ने कुछ इस तरह की फसल बोई जो केवल जमीन के निचे आती हो | जैसे, आलू, गाजर, इत्यादि | इस तरह मनुष्य ने भगवान को फिर मात दे दी | इस मनुष्य के व्यवहार पर भगवान हस पड़े और उन्हें बड़ा खेद हुआ | अब फिर तीसरे वर्ष के फसल की बात चली | इस बार भगवान ने जमीन के ऊपर और जमीन के निचे आने वाले फसल में आधे आधे हिस्से के लेने की बात की | मनुष्य को अपने चाल का पता था और उसने भगवान के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया | फिर वर्ष भर का समय बीत गया | फसल आने का वक्त आ गया | इस बार फिर भगवान फसल लेने मनुष्य के पास पहुँच गए | फिर वही हुआ जो पिछले दो वर्षो से हो रहा था | इस बार भी भगवान को फसल का कोई भी हिस्सा मिलता नजर नहीं आया | इस बार मनुष्य ने बहोत बड़ी चलाखी की | उसने इस तरह की फसल बोई जो केवल वृक्ष के बीच में ही आती हो | जैसे, भुट्टा, भेंडी, इत्यादि |भगवान ने बड़ी सोचकर जमीन के निचे और ऊपर आने वाले दोनों फसल के आधे आधे हिस्से लेने की बात सोची थी | तीसरे वर्ष भी भगवान असफल साबित हुए | भगवान खूब हस पड़े और आस्चर्य भी प्रगट किया मनुष्य की इस हरकत पर | फिर भगवान ने हमेशा के लिए इस धरती से विदा ले ली | फिर भी भगवान ने मनुष्य से कहा जब तक मनुष्य जीवित रहेगा तब तक वे निसर्ग की ये सारी चीजे मनुष्य को देते रहेंगे, बदले में बिना कुछ लिए | और इस तरह वे धरती से हमेशा के लिए विदा हो गए |

क्या हो गया हमारे इस इन्सान को और इंसानियत को? जैसे ही मैंने मेरे इस ब्लॉग को खत्म किया, मेरे एफएम रेडियो में एक पुराने गानेकी धुन सुनाई देने लगी, जिसे मै ध्यान से सुनता और मन ही मन गाता ही चला जा रहा था |

देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान |
कितना बदल गया इन्सान, कितना बदल गया इन्सान |

भारत भावनावोंसे भरा एक देश है ! इसीलिए ‘भारत’ शब्द तीन तत्वोसे बना है - भाव, राग, ताल ! भगवा इसी शुद्ध भाव का प्रतीक है...
Posted by Avadhoot Dandekar on Wednesday, December 16, 2015