फूल की खुशबु
सागर की गहराई ही सब कुछ नहीं है |
फूलोंकी खुशबु भी यदि पास हो तो क्या बात है |
चार पंखुड़ीयोंसे निर्मित, एक आकृति हो तुम |
काले कीचड़ पर उमटी, एक लाली हो तुम |
हवाओंसे बात करती, एक आकांक्षा हो तुम |
गगन की और देखती, एक कामना हो तुम |
जिसने तुम्हे देखा, हसिसे खिलने लगा |
जिसने तुम्हे गले लगाया, फूल सा बन गया |
फूल तुम्हारा आकार है, खुशबू तुम्हारी निराकार है |
फूल होना, मेरा होना है |
खुशबू होना, तुम्हे पाना है |
फूल होकर, मुझे पाना है |
मुझे खोकर, तुम्हे पाना है |
ईश्वर या परमात्मा का जगत भी कुछ ऐसा ही है | जबतक मै हूँ और जहांतक मै हूँ तबतक ईश्वर के जगत का प्रारंभ नहीं होता | और जैसेही मै मिट जाताहूँ, ईश्वर के जगत का प्रारंभ होता है | मेरा होनाही एक बड़ी बाधा है | मेरा होनाही मुझे ईश्वर से दूर ले जाता है और मेरा मीटना ही ईश्वर के करीब ले आता है |
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