Saturday, August 2, 2014

फूल की खुशबु


फूल की खुशबु 

सागर की गहराई ही सब कुछ नहीं है | 
फूलोंकी खुशबु भी यदि पास हो तो क्या बात है |

चार पंखुड़ीयोंसे निर्मित, एक आकृति हो तुम | 
काले कीचड़ पर उमटी, एक लाली हो तुम | 

हवाओंसे बात करती, एक आकांक्षा हो तुम | 
गगन की और देखती, एक कामना हो तुम | 

जिसने तुम्हे देखा, हसिसे खिलने लगा | 
जिसने तुम्हे गले लगाया, फूल सा बन गया | 

फूल तुम्हारा आकार है, खुशबू तुम्हारी निराकार है | 
फूल होना, मेरा होना है | 
खुशबू होना, तुम्हे पाना है | 
फूल होकर, मुझे पाना है | 
मुझे खोकर, तुम्हे पाना है |

ईश्वर या परमात्मा का जगत भी कुछ ऐसा ही है | जबतक मै हूँ और जहांतक मै हूँ तबतक ईश्वर के जगत का प्रारंभ नहीं होता | और जैसेही मै मिट जाताहूँ, ईश्वर के जगत का प्रारंभ होता है | मेरा होनाही एक बड़ी बाधा है | मेरा होनाही मुझे ईश्वर से दूर ले जाता है और मेरा मीटना ही ईश्वर के करीब ले आता है |

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